भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी विरासत में ४५०० साल का एक लंबा इतिहास है। हमारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी धरोहर प्रदर्शनी दर्शाती है कि किस प्रकार समय, कला और साहित्य के साथ – साथ यहाँ भारतीय भूमि पर वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय संस्कृति का भी विकास हुआ।.
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में, हम बीसवीं सदी के सोच का रंग पा सकते हैं। भारतीय दिमाग में वैज्ञानिक विचारधारा दो हज़ार पाँच सौ साल पहले से उपज रही थी। परमाणुवाद और ब्रह्मांडीय विकास की अवधारणाये, भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित विवरित की गयी हैं। भारत में ही शून्य की अवधारणा को अर्थ प्राप्त हुआ। दस के गुणा का मान, तीन की स्वर्णिम सूत्र, वर्गमूल और घन रूट पर १५०० साल पहले अध्धयन किया गया था, जबकि उसे यूरोप तक पहुँचने में और १००० साल लग गये।
तारे भारतीय खगोल शास्त्रियों के लिए एक विशेष संदेश हैं। तारामंडल की पहचान, चंद्रमा और सूरज की गति का अध्ययन ३००० साल पहले किया गया था।आकाशीय गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए, जंतर मंतर, विशाल राजगीर वेधशालाएं का एक समूह सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा बनाया गया था।
चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और असटंगा ह्रिदया, जो १ ई.वी. और ७ ई.वी. शताब्दी के बीच लिखा गया, आयुर्वेद या पारंपरिक भारतीय चिकित्सा का आधार रूप है, जिसकी सलाह आधुनिक चिकित्सक भी करते हैं। आधुनिक समय में, हर क्षेत्र में प्रगति, जैसे अंतरिक्ष विज्ञान, परमाणु विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, जैव प्रौद्योगिकी, कृषि और खाद्य उत्पादन, ऊर्जा, परिवहन आदि सराहनीय है। आज भारत को कई क्षेत्र में न केवल आत्म निर्भरता प्राप्त है, बल्कि विकसित एवं कई अन्य देशों को वह बुनियादी सुविधाओ का समर्थन और सेवाएं प्रदान कर रहा है। कई विकसित देशों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारतीयों द्वारा संचालित की जा रही है, जिसे अब स्वीकार किया गया है।
भूतकाल हमेशा से भारत के भविष्य का प्रेरणादायक रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारी लंबी और समृद्ध विरासत, हमारे कदम को परिभाषित करती है, उस राह पर, जहा पर हम अपने सपनो के एक मजबूत, आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र के तरफ बढ रहे है।