Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors
Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र, दिल्ली

निदेशक संदेश

देश में, जनसाधारण विशेष रूप से विद्यार्थियों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति विकसित करने में अब तक इसकी यात्रा अत्यंत उत्कृष्ट रही है। भारत ने अपनी यात्रा बहुत पहले 1946 में आरंभ की थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने पहली बार इस उक्ति का प्रयोग किया था और बाद में यह भारत के संविधान का हिस्सा बन गयी। वैज्ञानिक प्रवृत्ति जीवन का एक मार्ग है जो सवाल करने, भौतिक वास्तविकताओं को देखने, जांचने, परिकल्पित करने, विश्लेषित करने और संचारित करने पर जोर देता है। इस प्रकार वैज्ञानिक प्रवृत्ति आवश्यक रूप से एक नजरिए को बताती है जिसमें तर्क का अनुप्रयोग होता है।

पहला विज्ञान संग्रहालय, बिरला इन्डस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजी म्यूजियम (BITM), कोलकाता, सीएसआईआर की देख-रेख में 2 मई 1959 को खोला गया था। जुलाई 1965 में, देश का दूसरा विज्ञान संग्रहालय, विस्वेस्वरैया इन्डस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजी म्यूजियम(VITM), बंगलौर में खुला। कोलकाता और बंगलौर के बाद, 1974 में तीसरे विज्ञान केंद्र के लिए मुंबई में काम शुरू हुआ। विज्ञान संग्रहालयों के जरिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की लोकप्रियता का विस्तार और आकार जैसे जैसे बढ़ा, केंद्रीय योजना आयोग ने 1970 के दशक के आरंभ में, विज्ञान संग्रहालयों के आकलन के लिए एक टास्क फोर्स गठित की। टास्क फोर्स ने देश के विभिन्न भागों में राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर विज्ञान संग्रहालयों की स्थापना का अनुमोदन किया और एक केंद्रीय समन्वयक एजेंसी बनाने का भी अनुमोदन किया। 1978 में, भारत सरकार ने पहले से कोलकाता और बंगलौर में चल रहे एवं मुंबई में स्थापित किए गए विज्ञान संग्रहालयों को सीएसआईआर से अलग करने तथा उन्हें संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत 4 अप्रैल 1978 को पंजीकृत एक नवनिर्मित सोसाइटी नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम्स के अंतर्गत रखने का निर्णय लिया।

कोलकाता, बंगलौर और मुंबई केंद्रों के शुरू होते ही उत्तर में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक बड़े केंद्र की आवश्यकता महसूस की गई और फिर 1984 में नेशनल साइंस सेंटर, दिल्ली को संकल्पित किया गया और 1984 में तत्परता से काम शुरू हो गया। आर के पुरम में एक सार्वजनिक स्विमिंग पूल के पास एक छोटे से शेड में शुरू होकर और उसके बाद तिमारपुर में झाड़ियों वाले जंगल में विस्थापित होने के बाद अंततः नेशनल साइंस सेंटर, दिल्ली के दिल प्रगति मैदान में कल्पित, अभिकल्पित और निर्मित किया गया। इसका उद्घाटन 9 जनवरी 1992 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने किया था। खुलने के बाद से, केंद्र विज्ञान लोकप्रियकरण के उद्देश्य के लिए लगातार सेवा प्रदान कर रहा है।

केंद्र सदा गतिविधियों और उपलब्धियों के जरिए घटनाओं का स्थान रहा है। केंद्र को जनसामान्य के लिए 1992 में खोला गया और तब से केंद्र में लाखों दर्शकों की भीड़ आयी है और उन्होंने समाज के विभिन्न भागीदारों के लिए अनेक गतिविधियों में भाग लिया है। मैं केंद्र की पूरी टीम को इसका श्रेय देता हूं जिन्होंने चुनौतीपूर्ण मांग को पूरा करने के लिए लगातार सफलतापूर्वक काम किया है। हाल ही में केंद्र ने समाज की सेवा के 25 वर्ष का स्मरणोत्सव मनाने के लिए अपनी रजत जयंती मनायी है। इस प्रकार केंद्र दर्शकों के प्रति अपने उद्देश्य ‘आकर्शित करना दृ शिक्षित करना दृ मनोरंजन करना’ को पूरा कर रहा है।

डिजिटल प्रौद्योगिकी के युग ने लाखों लोगों तक पहुंचने के नए विस्तार विकसित किए हैं। समाज एक वैश्विक गांव बन गया है। इसलिए हमारे लिए अपने प्रत्याशित दर्शकों और अनुयायियों तक पहुंचना बहुत आवश्यक हो गया है। केंद्र की नवीन और आकर्षक वेबसाइट प्रस्तुत करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। यह बहुत आवश्यक हो गया है कि मैं आशा करूं कि केंद्र की गतिविधियां और सुविधाएं लाखों दर्शकों तक पहुंचे; इसलिए नवीन वेबसाइट अभिकल्पित की गई है और हमारे प्रिय दर्शकों के सम्मुख प्रस्तुत की गई है। वेबसाइट में वह सभी सूचनाएं हैं जिसकी कोई दर्शक केंद्र आने की योजना बनाने के लिए इच्छा करता है। इसमें हमारे व्यापार, विशेषज्ञता और समाज एवं भावी ग्राहकों से संबंधित हमारे जो क्षेत्र हो सकते हैं, के बारे में भी सूचना दी गई है। नयी वेबसाइट में विभिन्न दर्शकों एवं ग्राहकों तक पहुंचने के लिए अनेक नए विषय शामिल किए गए हैं जैसे कि एनएससीडी टीवी कार्नर, विपणन, मीडिया आदि। आप विषय वस्तु एवं अद्यतनीकरण के लिए हमें सोशल मीडिया पर भी देख सकते हैं।

मैं आशा करता हूं कि हमारे प्रिय दर्शक वेबसाइट के पृष्ठों को पसंद करेंगे और अपेक्षा है कि इसकी दृश्यता और पहुंच को बेहतर बनाने के लिए दर्शक हमें फीडबैक देंगे।

एन. रामदास अय्यर
निदेशक